BJP's social engineering

Editorial: तीन राज्यों में सीएम के नाम पर भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग

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BJP social engineering

भारतीय राजनीति में इसे प्रयोगकाल नहीं कहा जाएगा, अपितु यह सुसंधान के जरिये ऐसे प्रतिफल पाने का वक्त है, जोकि राज्यों और देश को आगे ले जा सके। बेशक, राजनीति में अब जाति और धर्म का रंग कुछ ज्यादा ही नजर आने लगा है, लेकिन प्रतियोगिता में जीतने के लिए हर दांव खेलना पड़ता है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और इसके बाद राजस्थान में भाजपा ने जिस प्रकार से नए चेहरों को चमकाते हुए जाति का कार्ड खेला है, वह यही बताता है। पूरे देश में किसी को इसकी भनक तक नहीं थी कि इन तीन राज्यों में मुख्यमंत्री के चेहरों पर क्या होने वाला है। कौन इन राज्यों में मुख्यमंत्री बनेगा, और आखिरी क्षणों में सभी समीकरणों, नामों की अनदेखी करते हुए पार्टी नेतृत्व ने ऐसे चेहरे आगे किए हैं, जोकि अभी तक अनजान थे।

जाहिर है, भाजपा की लोकप्रियता इस समय इन राज्यों के नेताओं की वजह से नहीं है, अपितु यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से है। ऐसे में पार्टी ने अनेक संदेश इन नए चेहरों को चुन कर दिए हैं। एक संदेश यह भी है कि पार्टी किसी को भी खास बना सकती है और इस दौरान कोई जान-पहचान या फिर रसूख काम नहीं आता है।

3 दिसंबर को चुनाव परिणाम आने के बाद से लोग बड़ी बेसब्री से राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के नाम का इंतजार कर रहे थे। अब राजस्थान में भजन लाल शर्मा तो मध्यप्रदेश में मोहन यादव वहीं छत्तीसगढ़ में आदिवासी चेहरे विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाया गया है। इन तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री के रूप में नया चेहरा देकर भाजपा ने 2024 के चुनाव के लिए नई लकीर खींची है। खास बात है कि इन नामों के जरिये पार्टी ने जातीय समीकरणों का पूरा ध्यान रखा है।दो राज्यों में आदिवासी और यादव समुदाय से मुख्यमंत्री घोषित करने के बाद भाजपा ने राजस्थान से ब्राह्मण चेहरे को मुख्यमंत्री के रूप में चुना है। इस बात के पहले भी कयास लग रहे थे कि दो राज्यों के बाद राजस्थान में भाजपा की तरफ से सामान्य वर्ग का चेहरा आगे किया जा सकता है।

सनातन के मुद्दे पर आक्रामक पार्टी ने ब्राह्मण चेहरे के जरिये राजस्थान के साथ ही देशभर में एक संदेश देने की कोशिश की है। राजस्थान में ब्राह्मण वोटरों की संख्या 8 से 9 फीसदी के करीब है। संख्या की बात करें तो प्रदेश में ब्राह्मण की आबादी 85 लाख से अधिक है। ऐसे में यह आबादी प्रदेश की 50 सीटों पर सीधा असर डालती है।

वहीं छत्तीसगढ़ में भाजपा को सत्ता में लाने में आदिवासी समुदाय ने अहम भूमिका अदा की है। राज्य में आदिवासी आबादी करीब 34 फीसदी है। राज्य में ओबीसी के बाद दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। राज्य में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 29 सीटों में भाजपा ने 17 सीटों पर जीत हासिल की है। ऐसे में 2024 को देखते हुए इस आदिवासी गढ़ को बचाए रखने की चुनौती थी। इसलिए पार्टी ने आदिवासी चेहरे विष्णु देव साय को मुख्यमंत्री बनाया है। खास बात है कि छत्तीसगढ़ के जरिये पार्टी ने ओडिशा और झारखंड को भी साधने की कोशिश की है।

झारखंड और ओडिशा में भी आदिवासी मतदाता चुनाव में काफी अहम भूमिका अदा करते हैं। दोनों राज्यों में सत्ता से बाहर भाजपा के लिए यह दांव काफी अहम माना जा रहा है।
इधर, मध्यप्रदेश की स्थिति देखें तो यहां ओबीसी मतदाताओं की संख्या करीब 52 फीसदी है। इसलिए पार्टी ने इस बार शिवराज सिंह चौहान के स्थान पर मोहन यादव पर दांव खेला है। पार्टी ने ब्राह्मण राजेंद्र शुक्ला और अजा समुदाय से जगदीश देवड़ा को डिप्टी सीएम देकर संतुलन बरकरार रखने की कोशिश की है।

पार्टी ने उज्जैन दक्षिण से विधायक मोहन यादव को कमान देकर यूपी और बिहार समेत अन्य राज्यों में यादव वोटरों को अपने पाले में करने के लिए बड़ा संदेश दिया है। मध्य प्रदेश में यादव सीएम के जरिये भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में लालू यादव को सीधे-सीधे चुनौती दी है। यूपी में यादवों की संख्या करीब 8 फीसदी मानी जाती है। ऐसे में ओबीसी की राजनीति में यादवों का दबदबा है। इसके साथ ही मध्यप्रदेश में पांव जमाने की कोशिश में जुटे अखिलेश यादव को झटका भी दिया है। वास्तव में इस बार सोशल इंजीनियरिंग का भाजपा ने ऐसा ताना-बाना पेश किया है, जोकि हर किसी को हैरत में डालता है। जनसेवा के लिए राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना सर्वोपरि होता है, भाजपा के पास देश के लिए एजेंडा है, जिसे पूरा करने के लिए यह सारी कवायद की जा रही है। 

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